ये कविता उस व्यक्ति को संबोधित करती है जिसके जीवनकल में न तो कुछ था , न कुछ है , और न ही कुछ होगा ......वो हर चीज से वंचित है ...जैसे सुख , प्यार , अपनापन , अपने , और यंहा तक की गम भी ..उसे नसीब नहीं .....वह एक बेजान मूर्ति की तरह है , जो हमे एकदम काल्पनिक सा लगता है ....और वो अपने जीवन को दुनिया से सम्बोधित करते हुए कहता है की .............................
चलती है ये सांसे इस तन के लिए ......फूलती भी है ये सांसे जब ये मन हो गम को लिए ...,,
पर मेरी सांसे क्यों नहीं है ऐसी .......................पता नहीं .........
आती है ये रुत इस भू पर इसकी प्यास भुजाने के लिए .......और चारो तरफ हरियाली फेलाने के लिए ......
पर मेरे मन की क्यों नहीं भुजती प्यास.................... पता नहीं.......
इस जिन्दगी में जीते है हम , अपनों के लिए .......और अपनों का प्यार पाने के लिए ........
पर मेरा क्या उद्येस्य है जीने का ................पता नहीं ..............
आये जब ये रुत मस्तानी मन को बहलाने के लिए ........और मन पर जमी गम की मिटी को उड़ने के लिए ........पर क्यों समय के साथ साथ चली जाती है ये रुत सुहानी ..............पता नहीं ......
कहती है ये दुनिया जो हो उसके खुदके भले के लिए ........और चलाती है अपनी हर समय अपना दबदबा बनाने के लिए ..............पर मेरी क्यों मन की मन में रह जाती है .............पता नहीं ......
चलता है ये जीवन रेल्रुपी गाड़ी के रूप में अपनों के साथ चलने के लिए .............और आने वाले हर स्टेशन से हर व्यक्ति को अपना बनाने के लिए ..............पर मेरी गाड़ी क्यों नहीं चलती ऐसे ...............पता नहीं .........
आखिर में .............. :
करेगे हम भी जीने की कोशिस अपनों के लिए .........और करुगा खुद को बदलने की कोशिस अपनों के लिए ..............................................................................................................पर ..............................................................................................................................क्या फिर ये जिन्दगी चलेगी सही से ........................................कुछ पता नहीं.......
धन्यवाद