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Hansi, Harayana, India
these all poems are written by me...and my internal thinking

Tuesday, June 21, 2011

हम भी ........





ले है साथी कुछ करने हम भी ..............
जो दिल में है  जस्बा दिखाएंगे उसे हम भी ...............
मत समझो हमे तुम कमजोर यारो , मत समझो तुम हमे बेडोर  यारो ,  क्यूंकि थामेंगे डोर इस दुनिया की किसी वक्त में हम भी  ...........

ये मत समझना की हमे अपने पे गरूर है , बस हम तो रखते है उचे ख्वाब उचे पहाड़ो  के समान , पर इन उचे ख्वाबो को हकीकत बनाएँगे कभी हम भी .......................
दिल में है  जस्बा कुछ कर दिखाने का ,की बनादे इस जनहान  को एसा  ,जिससे जाने जाये अलग से इस दुनिया में हम भी ...................

ये मन है  बड़ा चंचल  कैसे मैं काम करू , लेकिन फिर भी सोचता हूँ की , अगर रही प्रीत अपनों से अपनों की , और रही आशीर्वाद की महर अपनों की ,तो कढ़  दिखाएंगे इस दुनिया में हम भी ...........  
                  
                                                                  धन्यवाद

Tuesday, June 14, 2011

पता नहीं















ये कविता उस व्यक्ति को संबोधित करती  है जिसके जीवनकल में न तो कुछ था , न कुछ है , और न ही कुछ होगा ......वो हर चीज से वंचित है ...जैसे   सुख , प्यार , अपनापन , अपने , और यंहा तक की गम भी ..उसे नसीब नहीं  .....वह एक बेजान मूर्ति की तरह है  , जो हमे एकदम काल्पनिक सा लगता है ....और वो अपने जीवन को दुनिया से सम्बोधित करते हुए कहता है की .............................






चलती है ये सांसे इस तन के  लिए ......फूलती भी है ये सांसे जब ये मन हो गम को लिए ...,,
पर मेरी सांसे क्यों नहीं है ऐसी .......................पता नहीं .........

आती है ये रुत इस भू पर इसकी प्यास भुजाने के लिए .......और चारो तरफ हरियाली फेलाने के लिए ......
पर मेरे मन की क्यों नहीं भुजती प्यास.................... पता नहीं.......

इस जिन्दगी में जीते है हम , अपनों के लिए .......और अपनों का प्यार पाने के लिए ........
पर मेरा क्या उद्येस्य है जीने का ................पता नहीं ..............


आये जब ये रुत मस्तानी मन को बहलाने के लिए ........और मन  पर जमी गम की मिटी को उड़ने के लिए ........पर क्यों समय के साथ साथ चली  जाती है ये रुत सुहानी  ..............पता नहीं ......


कहती है ये दुनिया जो हो उसके खुदके भले के लिए ........और चलाती है अपनी हर समय अपना दबदबा बनाने के लिए ..............पर मेरी क्यों मन की मन में रह जाती है .............पता नहीं ......


चलता है ये जीवन रेल्रुपी  गाड़ी के रूप में अपनों के साथ चलने के लिए .............और आने वाले हर स्टेशन से हर व्यक्ति  को  अपना बनाने के लिए ..............पर मेरी गाड़ी क्यों नहीं चलती ऐसे ...............पता नहीं .........



आखिर में .............. :  

                                 करेगे हम  भी जीने की कोशिस अपनों के लिए .........और करुगा खुद को बदलने की कोशिस अपनों के लिए ..............................................................................................................पर ..............................................................................................................................क्या फिर ये जिन्दगी चलेगी सही से ........................................कुछ पता नहीं.......


                                                                 धन्यवाद

Monday, June 13, 2011

राहों की जन्नत


 




























राहों की बाँहों में समा जाने को जी चाहता है ,जंहा भी ये जांए इनके साथ चले जाने को जी चाहता है ,क्या करे ये जीवन है बहुत छोटा सा ,नहीं तो इसके सनाटे में सिमिट जाने को जी चाहता है ........

मिलाती है ये प्यार से प्यार को , यार से यार को देखा जाये तो ये दुनिया है कितनी बड़ी .और अनगिनत राहें इसमें पड़ी फिर भी हर रहा को अपनाने को जी चाहता है ......................

जी चाहता है की जन्हाँ तक ये जाएँ इनके साथ चला जाऊ और देखू की कंहा ये हो खत्म इनके बारे में जान जाऊ ,दिलीख्वाहिश है की काश ये खत्म हो स्वर्ग में ,पर कंहा मेरे ऐसे कर्म की जो मेरा स्वर्ग में ताकने को जी चाहता है...............

मेरा तो अंत कभी होगा ,पर इन राहों का नहीं ,मेरी कविता का भी अतं होगा ,पर इसके विषय का नहीं .....

फिर आखिर में मैं कहता हूँ की कितनी सुहानी लगती है ये राहें सफर में ,इनके साथ चलते -चलते मेरा जीवन सफल हो जाए ऐसा मेरा जी चाहता है .......................................

धन्यवाद .

Friday, June 10, 2011

कोई अपना ही ...

 
 
 
जिन्दगी एक नव में बैठा नाविक है ,जो हमे एक पार से दूसरे पार लगाता है. जिन्दगी माँ बाप की सेवा है ,जो हमे प्रेम का घूंट पिलाता है .वैसे देखा जाये तो जिन्दगी का अपना खुदका कोई अस्तित्व नहीं पर  जिन्दगी का अस्तित्व कोई अपना ही बनाता है ...............................


जिन्दगी में हम कभी कुछ हासिल नहीं कर सकते ,जब तक कोई  अपना जोर नहीं लगाता है . मन की चंचलता है हवा के समान ,जो इस जिन्दगी को इस जनहान में फैलता है यूँ तो मन भटक जाता है काले घनघोर जंगलो में ,पर  दोबारा से इस जिन्दगी में वापिस ,कोई अपना ही लाता है ............

ये लम्बी -लम्बी राहें जो लगती है , कभी कभी सुनी ,पर इन राहों को  जन्नत कोई अपना ही बनाता है . अपना .........................कोंन  है अपना ? कोई नहीं आज  किसी का पर जब टूट पड़े उस पर मुसीबतों का पहाड़ तब वही अपना अपनों को याद आता है ...आखिर  अपना तो अपना ही है तो चाहे वो अपना सपना ही क्यों  ना हो .वैस तो हम सपने देखते है  खूब  पर दूसरे के सपने को अपना सपना समझ कर साकार कोई अपना ही बनाता है ............................................आखिर में मैं कहता हूँ की आज नहीं रहा अपना पन  कहीं पर फिर भी अपना तो हमेशा हमे बहुत याद आता है ................


मुझे आप अजमा लीजिये






दिल में है क्या आज मेरे  आप अजमा लिजिये   हां ...है बहुत कमज़ोर  ये भी आप जान लिजिये  आप मुझे प्यार से बोलो तो सही  फिर  देखो  इस आदमी की आप अपने कदमो में जान लिजिये  मैं तो हु अपनों के प्यार का मारा  , और सफर में चलते साथ हमसाथी के साथ का मारा लेकिन फिर भी मुझ पर अगर आपको भरोसा नहीं तो मुझे आप अभी के अभी  यही मर दीजिए ...................     

Thursday, June 9, 2011

सोच ......................


                                                       coming soon

Wednesday, June 8, 2011

" मैं " मेरी









"  मैं "    मेरी मुझको ही  चढ़ाती है और यही मुझ को गिराती है  
मन को तो है मचलने की आदत्त पर मुझे मेरी आत्मा ही हर गलत और सही समझाती  है ,
जब मैं   कुछ गलत करता  हु  तब किसी का होश नहीं होता और न साथ ,
पर उस समय सिर्फ मेरी  आत्मा ही मेरी  रूह  को हिलाती है,  
तब मैं   जगता   हु   और उसी वक्त मेरी पलके गिर आती है 

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